तहजीब की तालीम देने वाले कांग्रेसीयों! अरे, इन्हें बताओ कि गंगा और जमुना की तहजीब नहीं होती, यह दोनों ही सनातन धर्म से जुडी हैं। सनातन मतावलंबियों को तारने में इन नदियों के बहुत से महत्व हैं, गंगा का श्रीराम से और यमुना का श्रीकृष्ण से गहरा नाता है, वही तुम्हारे चिच्चा जिसे दरियाव बोलते हैं।
तुम इतने पाखंडी हो जो मुस्लिमों को सेकुलर मानते हो जिसके कौम में इंसान के लिए धर्म नहीं, धर्म के लिए इंसान बना है, जो शाहीन बाग में देश तोड़ने की सजिश कर रहा है। तुम सेकुलिरिज्म के नाम पर उसकी पैरवी कर रहे हो। अरे, उसी तरह जैसे वह दत्तात्रेय गोत्र वाला तुम्हे जबरन हिंदू दिख रहा है, ईसाई क्यों नहीं?
देश की संस्कृति और सनातन धर्म के लुटरे कौम की भाषा बोलने लगा है। देश द्रोही शब्द पर उड़ता तीर ले रहे हैं। ‘सेकुलर’ जिसे 1976 इमरजेंसी के समय संविधान के 42वें संशोधन में प्रस्तावना में घुसेड़ा गया जब पूरा विपक्ष जेल में था। अगर कांग्रेस को आप सोच रहे हो कि देश की चिंता है तो आप भ्रम में हो, वह रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों की वकालत कर साथ ही पाकिस्तान में स्थानीय मुस्लिम जो भारत में रहना चाहते हैं, उनका पक्षधर है।
कांग्रेसी नेता आतंकियों, टुकड़े – टुकड़े गैंग, देश तोड़ने वालों, हिन्दु धर्म की आलोचना करने वालों के साथ खड़े हैं। सोनिया गांधी बाटला हाउस पुलिस मुठभेड़ में मारे गये आतंकवादियों पर तीन दिन तक सोई नहीं क्योंकि रोती रहीं।
कारण वही है, जो पूर्व PM मनमोहन सिंह ने कहा था कि भारत के संसाधनों पर पहला हक मुस्लिमों का है क्योंकि उन्होंने देश को धर्म के नाम कई टुकड़ो में विभाजित किया, आने वाले समय में कुछ और भी बटवारा हो सकता है क्योंकि वोट बैंक प्रधान है, देश का क्या? कौन बाप का मुल्क है, पार्टी वैसे भी विदेशी ईसाई महिला और उसके ईसाई लड़के, लड़की, दामाद, नाती की सुरक्षित जागीर है।
कांग्रेस अंग्रेजी हुकमत और विदेशी प्रभुता चाहने वाली पार्टी है जो कश्मीर, केरल, पश्चिम बंगाल, पूर्वोत्तर भारत और लक्षदीप का डेमोग्राफ बदल दी है। यह सदा स्मरण रहे “हिंदू घटा की देश बटा“ यही सेकुलर, वामपंथी, नास्तिक, विधर्मी सब बन जाता है। नौकरी सब को चाहिए लेकिन 138 करोड़ जनसंख्या पर ध्यान नहीं है। GDP, मंहगाई, बेरोजगारी की बाजीगरी होगी।
हिंदुओं पर जबरन कब तक हिंदू – मुस्लिम भाई – भाई थोपते रहोगें? भारत कब तक दूसरे लोगों की सैरगाह बना रहेगा। आज 2020 आते तक लोग अपने बंधु – बांधव तक को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं, तुम तैमूरी और बाबर के वंशजों को साथ चलाना चाहते हो, जो पिछले 1000 साल साथ नहीं चल सका वह अब कैसे भारतीय संस्कृति का हिस्सा हो सकता है? जिसके आस्था का शिविर भारत भूमि से दूर कहीं अरब के रेगिस्तान में पाया जाता है।
सबसे प्रमुख बात कि जिस धर्म में औरत का कोई अधिकार ही नहीं है, शाहबानो जैसी कितनी खवातीनों को सिर्फ नारकीय जीवन जीने पर विवश किया क्योंकि धर्माधीन को हलाला करना है। उसे मर्द 52 दिन से आगे बिठा कर पीछे से जाने कौन सी आज़ादी की खिचड़ी पका रहा है।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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