क्या आपने कभी सोचा है कि इस नश्वर जगत में कौन अपना है और किसे पराया कहा जाए? यदि हम विचार करें कि आखिर मनुष्य जीवन किस लिए होता है, कौन इसे भोगता है, कौन इसे जानता है?
जानने के दावे सब करते हैं, किंतु प्रश्न वही है, वह कौन है? जो स्वयं को जानता है और कितना जानता है। आप ने यदि जान लिया है तो फिर मान भी लिया होगा। वेद ‘विद्’ धातु से बना शब्द है जिसका अर्थ है ‘जानना’। क्या जानना है? स्वयं को! जगत को या ईश्वर को? उत्तर साफ है, स्वयं को स्वयं से जानना। इस देह में आत्मा परमात्मा का स्वरूप होती है। जिस भांति सूर्य एक होकर अपने को नदी, जलाशय, बावड़ी, समुद्र और आपके व हमारे घर में प्रदर्शित करता है। उसी तरह परमात्मा अपने को आत्मा के रूप में व्यक्त करता है।
सनातनी होकर कैसे हम भेड़-चाल और भेद-भाव में चलने लगे हैं। व्यक्ति स्वयं को जातीय श्रेष्ठता में अभिव्यक्त करता है। उसका गौण अस्तित्व कितना है, इस पर वह मौन है। नौकरी के नाम पर ऐसी कतार लगी है कि सुबह होते ही वह बैग लटकाए बड़ी तेजी से भगा जा रहा है। जिसे नौकरी नहीं मिली है, वह नौकरी पाने के लिए झोला टांगे दौड़ रहा है। लगता है धन केंद्रित सोच बना कर सभी को नौकरी की चक्की में डाला जा रहा है।
२५-३० वर्ष तक नौकरी मिलने की जद्दोजहद बाकी के ३० वर्ष नौकरी बचाने का संघर्ष। रोगग्रस्त और जर्जर होने पर पेंशन मिलती है, घर रहने के लिए। अस्पताल का चक्कर और दवाएं ही जीवन का पर्याय बन गई हैं। जीवन की उमंग चिंता और फिर चिता की ओर घूम जाती है।
अब आपने विचार किया कि आप कौन हैं? आर्थिक इकाई, मजदूर या मजबूर? कम से कम यह स्पष्ट है कि आप मनुष्य की कोटि के तो नहीं हैं। आप अपने से लड़ नहीं पाये तब शराब का सहारा लेने लगे। अब आपकी नई पहचान बेवड़े की हो गयी है।
आपके मस्तिष्क से कौन खेल रहा है? न्यूजपेपर, न्यूजचैनल या सिनेमा? आप जिसे मनोरंजन कह रहे हैं, उसने तो आपको ही नियंत्रित कर लिया है। इस विषय पर आपने आज से पहले कब स्वतंत्र रूप से सोचा था?
पूरी दुनिया आपको अमानुष बनाने पर लगी है। हिंसा और हिंसक विचार पूरी तरह से समाज पर हावी है। आप आंख बंद कर ध्यान करें, देखें क्या विचार आया? कुछ आया भी या IPL देखने की जल्दी है? हमारे पास अपने लिए समय नहीं है, पता नहीं कब अपने आप से बात की थी, याद नहीं आ रहा है।
जिसे हम जीने के लिए जीना कह रहे हैं दरअसल वह मरने के लिए जी रहे हैं। आप अकेले बैठकर, रोकर देखिए। अपने को प्रेम करके देखिए। मरने के लिए न जीयें, जीयें ऐसे कि मृत्यु भी महोत्सव बन सके। आप से पहले बहुत से मानव आये हैं और आपके बाद भी आते रहेंगे। अहंकार की गठरी उतार फेंकिए। मात्र यह देखिए कि आप जग गये हैं, स्वतंत्र हुए हैं। क्या आप में करुणा जन्म ली है? यदि हाँ तो अशांति क्यों है?
प्रपंच करके क्या अर्जित कर लिए? दुनियावी दावे ने आपको क्या से क्या बना दिया है। आपको नौकरी चाहिए, छोकरी भी चाहिए, एक छोटा घर, बड़ा भी चलेगा, एक-दो-तीन गाड़ी भी चलेगी। अंबानी और अडानी के धन से डाह भी होती होगी। ज्ञान आपके सामर्थ्य को प्रदर्शित करता है और धन स्थूल काया को। आपकी स्वतंत्र बुद्धि निर्णय करेगी कि आप क्या करना चाहते हैं।
ए भाई! जरा देख के चलो…