मेरे जीवन का अबतक का सबसे अद्भुत अनुभव जो शायद शब्दों के माध्यम से नहीं कहा जा सकता है लेकिन मेरे शब्द और आप के भाव मिल जाये तो जय श्री हरि।
मई 17 को भगवान बद्रीनाथ के पास पहुँच गये ऐसा लगा वास्तव में बैकुंठ आ गये, बाल मन मे जितने चित्र अंकित थे वो तो यही कह रहे थे। शरीर वाला भाव या कहे द्वंद, भेद ऐसा लगा मिट गया। मैं इसी दिव्य लोक का वासी हूँ। झूम के भगवान का नाम लेना, कई बार गीता पाठ करना एक बार तो दर्शन की लाइन में पूरा हो जाता था। तुलसी की खुशबू बहुत ही अच्छी थी, स्वाद तो लगता था सारी बीमारी को मार डालेगी।
अलकनंदा का शोर हिमालय में बादलों की गर्जना, ऐसा लगे जैसे ह्रदय फट जाएगा। तापमान -2*c, रात में मौसम कब बदल जाये कुछ कहा नहीं जा सकता। अलकनंदा के तट पर यही अग्निकुंड है जिसका जल गर्म है क्योंकि अलकनंदा के जल से आप स्नान नहीं कर सकते है। अग्नि कुंड में जल्दी स्नान कर ब्रह्म कपाली पर पितरों को तर्पण कर भगवान के दर्शन फिर किये।
बद्रीनाथ से 4 किमी दूर माणा गांव है जो भारत चीन के बार्डर पर बसा है। यहीं सरस्वती नदी अलकनंदा में मिल जाती है। वेदव्यास जी ने यही सभी शास्त्रों की रचना की। गणेशजी की गुफा और भीम पुल यही है। जब पांडव हिमालय में वेदव्यास से मिलने आये तो भीम ने एक शिलाखंड तोड़ कर सरस्वती नदी पर फेंका जिससे आने जाने का रास्ता बन गया। रास्ते मे ही नर नारायण की माता का मंदिर है।
व्यास जी की गुफा में पंडित जी से एक घंटा तक चर्चा हुई। व्यास की गुफा को कई बार प्रणाम किया। एक ब्राह्मण इतने ग्रंथों की रचना कर भारत को सनातन धर्म को एक सूत्र में बांध दिया। माणा गांव के लोग छः महीने ही यहाँ आते है बाकी ठंडी के छह महीने बगल के जिले में रहते हैं। यहाँ की जीवन शैली प्राकृतिक है।
व्यास गुफा के बाद माणा गांव घूमते हुये रास्ते से भटक गये और शाम होने लगी निर्जन में एक पहाड़ी के पास जानवरों के कुछ अवशेष दिखाई दिये जो कि इतनी ऊँचाई पर संभव नहीं है। एक बार तो मन आशंका से भयभीत हुआ फिर याद आया अरे ये धरती का बैकुण्ड है। नारायण स्वयं है, तो कैसा डर? मन उत्तेजना से भर गया।
सबसे कौतुहल की बात मैं तीन दिन यहाँ रहा मेरे रोंगटे खड़े ही थे ऐसा लगता था मैं कई बार यहाँ आया हूं, युगों-युगों से आता रहा हूं।
अकेले था फिर भी बहुत अपनापन जैसे लगे की भगवान साथ चल रहे हैं नर नारायण पर्वत के बीच स्थित मंदिर लगे कितनी बार देखूं। भगवान यहां साक्षात है। बस आपको इसकी अनुभूति करनी होगी। यहाँ पहुचेंगे तो पितरों की परिजन की भी एक बार सुधि आएगी कि मेरे न जाने कितनी
पीढियां आयी होगी।
यहाँ का कढ़ी चावल और मसलपुआ भी अदभुत महाप्रसाद है। मनुष्य, शरीर, चिंता, आत्मा सब मिटी रहेगी जब तक आप पुण्य क्षेत्र में हैं। क्यों शास्त्र कहते हैं, कलयुग में धर्म यहाँ चार पैर यानि
जाग्रत अवस्था में रहेगा। यहां आप विष्णु के हो जाते हैं किन्तु जैसे ही बाहर निकलते हैं, वही काम, क्रोध, मद, लोभ धर दबोचते हैं।
Bada hi anokha adbhud romanchkari h ..ye ap ki yatra ap bade hi dhany h jo prabhu ki nagari me 3 din bitakr hm logo ko bhi shi hari ke darshan kara diye .
बहुत धन्यवाद भावना जोड़ने के लिये🙏😑