आरक्षण खत्म करने के उपाय

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Dhananjay Gangey
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2020 में जातिगत आरक्षण को पुनः 10 साल के लिए बढ़ाया जाना है। एक बार फिर टकराव की स्थिति आएंगी।

आरक्षण की समीक्षा करके 2020 में आरक्षण की अवधि बढ़ाने के पूर्व यादव या अहीर जो भारत में कभी सामाजिक रूप से पिछड़े नहीं रहे, जैसा कि उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रामनरेश यादव (1977–1979) ने कहा था, उन्हें आरक्षण की सीमा से बाहर किया जाय।

2025 तक चमार / जाटव / पेरियार जैसी जातियों को आरक्षण से बाहर किया जाय क्योंकि इन्हें आरक्षण मिलते और अनुसूचित आरक्षित वर्ग का सबसे ज्यादा लाभ उठाते 79 वर्ष हो जायेंगे, अब इनका प्रतिनिधित्व पूरा हो चुका है।

2025 तक ही अनुसूचित जनजति वर्ग में शामिल ‘मीना’ जो पिछड़े वर्ग में कभी नहीं थे। यह जयपुर नरेश के सैनिक वर्ग में शामिल थे, लेकिन सुदूर ‘मीना जाति’ की स्थिति का आकलन करके इन्हें आरक्षित वर्ग में शामिल किया गया था, इनका भी प्रतिनिधित्व पूरा हो चुका।

2028 तक कुर्मी / महतो / पटेल को आरक्षण की सीमा से बाहर किया जाय। वैसे भी पूरे भारत में इन्हें आरक्षण नहीं मिलता और इनका प्रतिनिधित्व भी तब तक पूरा हो जायेगा। इन्हें भी आरक्षण की सीमा से निकाल कर जो अभी भी वंचित हैं उन्हें दिया जाय।

2020 के आरक्षण संशोधन में यह शामिल किया जाय कि जिसके परिवार में पिता आरक्षण से सरकारी नौकरी पा गया है, उस परिवार को आरक्षण की सीमा से बाहर किया जायेगा।

जातिगत आरक्षण समाज में भयंकर कुंठा भर रही है, यही वजह है जो डॉ अंबेडकर ने 10 साल के आरक्षण की बात की और अब वही आरक्षण राजनीति का औजार बन गया है। जिसे उन्होंने तभी चेताया भी था।

2030 तक आरक्षण को आर्थिक आधार पर करके, साथ ही ‘एक परिवार – एक बार’ के फार्मूले पर अगले 10 साल तक किया जाय। 2040 तक आरक्षण को किसी भी सूरत में भारत से खत्म किया जाय यदि सरकार को पिछड़ों, वंचितों का वास्तव में उत्थान करना है और सामाजिक समरसता को स्थापित करना है।

पूर्व राष्ट्रपति व भारत रत्न डॉ अब्दुल कलाम ने विजन 2020 दिया था जो विकसित भारत की कल्पना थी। हम जल्द ही 2020 में प्रवेश करने वाले हैं। इस स्थिति में आरक्षण को 20 साल और देकर खत्म किया जाय।

मनोविज्ञान भी कहता है कि जिसकी बार – बार मदद की जायेगी वह अपने पैरों पर खड़ा न होकर आपके सहारे की प्रतीक्षा करेगा। पीढ़ियों को आपस में लड़ा कर सत्ता प्राप्त करना उद्देश्य नहीं होना चाहिए। वास्तविक रोजगार मुहैया कराके और जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू करके संसाधनों तक सब की पहुँच सुनिश्चित की जाय। योग्यता को दरकिनार करने से IIT, IIM या मेडिकल में योग्य लोग नहीं मिल पा रहे हैं, जिससे भारत का विकास प्रभावित है।

समय रहते आरक्षण को खत्म नहीं किया गया तो अभी आरक्षण लेने के लिये लंबी कतार लगी है जो सड़क, ट्रेन, शहर रोकने और हिंसा करने को तैयार है। आरक्षण अपने उद्देश्य से भटक गया है, निकलने को कौन कहे? इसे ही अपना अधिकार मान लिया गया, राजनीति ऊपर से प्रवेश कर गयी ‘यह मेरी जाति, वह तेरी जाति’

अभी कितने दशक आरक्षण का झुनझुना चलेगा? राजनीति साहस नहीं दिखाती है। नये जातिवर्ग और जातियां आरक्षित वर्ग में शामिल होने के लिए किसी कीमत पर तैयार हैं जिसमें पाटीदार, कुर्मी, मराठा, जाट, गुर्जर, कापू, मुस्लिम और ईसाई अदि जातियाँ शामिल हैं।

गौरतलब है कि गुजरात के पटेल / कुर्मी जो कि रसूखदार और किसान वर्ग जो सम्पन्नवर्ग में आते हैं, वह भी उत्तर भारतीय कुर्मीयों की तरह अपने लिए आरक्षण चाहते हैं। दूसरे तरफ झारखंड के कुर्मी / महतो जनजातीय वर्ग में शामिल होने के लिये आंदोलन कर रहे हैं। क्या आगे का भारत सिविलवार करके आरक्षण खत्म करेगा या जातीय आधार को आर्थिक आधार में बदलेगा या और भी जातियों को आरक्षित श्रेणी में शामिल करेगा, यह समय और सरकार के ऊपर है।

समीक्षा करके, कुछ को बाहर करके, एक तय सीमा में आरक्षण को खत्म किया जा सकता है। यह सब तभी संभव है जब भारत का तेजी से विकास हो, गांव और शहर की खाई को कम किया जाय, औद्योगिकीकरण समान रूप से हो और कृषि घाटे के सौदे से लाभ की स्थिति में आये।


नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।

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