भारत के पतन में ही उत्थान के सूत्र हैं

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Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
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भारतीय समाज जब प्राचीन काल में एक था तो तरक्की की नई इबातते लिखता था, विश्व के लिए आश्चर्य का देश, पूरे विश्व की शिक्षा-व्यापार का केंद्र हुआ करता था।

नालंदा, तक्षशिला, बलभी, प्रयाग, मथुरा, काशी, उज्जैनी, कांचीपुरम शिक्षा के बड़े केंद्र थे जहाँ वेद, उपनिषद, ज्यामितीय, अंकगणित, बीजगणित, ज्योतिष, वेदांग, इतिहास और पुराणों की शिक्षा दी जाती थी। किसी भी राष्ट्र की मजबूती का आधार उसकी शिक्षा व्यवस्था होती है क्योंकि समय के साथ इसी माध्यम से ही चला जा सकता है।

व्यापार के केंद्र ताम्रलिप्ति (बंगाल), भड़ौच (गुजरात), अरिकामेडु (दक्षिण भारत), थट्टा (पाकिस्तान), चटगांव (बंग्लादेश) प्रसिद्ध थे जहाँ विश्व के व्यापारी इक्कठा होते थे।

इसका विवरण मेगस्थनीज, फाह्यान, ह्वेनसांग, इतसिंग, निकोलकोन्टी, बारबोसा, इब्नबतूता, अलमसूदी, अलबरूनी आदि ने अपने पुस्तकों में भी दिए हैं।

उस समय पर विचार जरूरी है जब भारत पर विदेशियों का आक्रमण हुआ डेरियस, सिंकन्दर, शक, कुषाण, यूची, मंगोलों के आक्रमण को भारत मुँहतोड़ जबाब सदियों तक दिया।
कमोबेश यह व्यवस्था उत्तरभारत में हर्षवर्धन के बाद यशोबर्धन तक, दक्षिण में मजबूत चोल राजाओं तक बनी रही।

एक समय तक वृहद (अखण्ड) भारत का विस्तार वियतनाम, कम्बोडिया, थाईलैंड, हिन्द चीन, जावा, सुमात्रा, अफगानिस्तान, म्यामांर और चीन की सीमा तक ज्ञात स्रोतों के अनुसार थी जिसमें  अभी भी भारत के विस्तार का पूरा इतिहास प्रकट होना बाकी ही है। शिक्षा में सेंध और सामाजिक व्यवस्था में सेंधमारी तथा वेद से साधारण लोगों की दूरी भारत को अपनों से दूर कर दिया। अपने अपनों से मोर्चा लेने लगे, आंतरिक कलह और गुलामी, विज्ञान को रोककर समाज की गतिशीलता को अवरूद्ध कर देश को पतन की ओर ले जाती है।

केंद्रीकृत शासन का अभाव और योग्य उत्तराधिकारी कमी ने बर्बर और षड्यंत्रकारी मुस्लिमों को  कुछ गद्दार भारतीय (जिन्हें सत्ता की अभिलाषा थी) कि मदद से गुप्त नीतियों को उजागर कर भारत में सफल होने दिया।

परिणामस्वरूप शिक्षा केंद्र को सबसे पहले ध्वस्त किया गया जिससे विचार-धारात्मक स्तर पर भारत को कमजोर किया जा सका। व्यापार का क्या है वह अंग्रेज़ो तक चलता रहा। अंग्रेजो ने भारत के व्यापार में आमूलचूल परिवर्तन करके निर्यात प्राधन अर्थव्यवस्था को आयात प्राधन और कच्चेमाल के स्थल के रूप में परिवर्तित कर दिया।

भारत के व्यापार को देख कर प्राचीन काल में जो प्लिनी व्यापार से भारत में इकट्ठा हो रहे सोने के लिये कहा था कि पूरे विश्व से सोना घूम कर भारत आ जाता है, वही प्लिनी 1835 में भारत के गवर्नर जनरल विलियम वेटिंग मैदान में बिखरे बुनकरों की हड्डियों को देखकर कहा था कि कामगार खा न पाये इस लिये उनसे नील उगाई जाती है।

भारत का रेशम जो विश्व प्रसिद्ध था, अंग्रेजो ने बुनकरों के हाथ ही काट लिये। भारत के परम्परागत उद्योगों को बंद कराकर कच्चेमाल की आपूर्ति वाले देश के रूप में परणित कर दिया।

प्रयाग में भारद्वाज के पास 50 हजार विद्यार्थियों को शिक्षा दी जाती थी, तक्षशिला और नालंदा में भी दस-दस हजार विद्यार्थी पढ़ा करते थे।

कितने प्राचीन अविष्कार, शून्य, दशमलव, संख्या पध्दति, पाई का मान, शून्य से एक के बीच अनंत की संख्या, चिकित्सा और शल्य चिकित्सा पर चरक, सुश्रुत और अथर्ववेद के विवरण और संगीत पर भी न जाने कितने अविष्कार तथा प्राचीन विज्ञान और वेद पर विश्व रिसर्च कर सकता है लेकिन भारत तो कसम खाये बैठा है कि हम पश्चिम के नकल से काम चलाएंगे और राजनेता को ही सबसे बड़ा वैज्ञानिक मानेंगे।

ध्यान रहें जो समाज वैज्ञानिक, इंजीनियरिंग, शिक्षक और विद्वान की कद्र नहीं कर सकता वह मूढ़ और मूर्ख ही रहेगा दूसरे की दया का पात्र ही बना रहेगा। वह शिक्षा, व्यापार, सुरक्षा अथवा किसी न किसी बहाने कटोरा लिए विश्व समुदाय के सन्मुख खड़ा रहेगा।

भारतीय समाज मे विदेशी शासन द्वारा कटुता पिरोई गई, शासन व्यवस्था को स्थायित्व देने के लिये कोई भी शासक, सत्ता को अपने वंशजों के लिए भी सुरक्षित करना चाहता है।

उसकी प्रमुख शक्ति वेद, वर्णव्यवस्था, ब्राह्मण को अस्पर्श घोषित कर बहुसंख्यक समाज को शासन की ओर तक मोड़ा गया, समाज को बांटा गया जिसे आधुनिक काल में तत्कालीन सत्तारूढ़ पार्टी, कांग्रेस ने भी सेकुलिरिज्म के माध्यम से बढ़ावा दिया। यदि भारतीय सनातन व्यवस्था दम घोटू होती, उसका आधार शोषण होता तो क्या हजारों वर्ष चल सकती थी? तब उसके खिलाफ विद्रोह और क्रांति नहीं होती।

आज की राजनीति व्यवस्था पर दृष्टि डालें तो 72 साल के लोकतंत्र और आरक्षण के बीच कोई जाति ऊपर वाले पायदान पर जाने को तैयार नहीं अलबत्ता ऊपर वाली जाति ही नीचे जाने के लिए तोड़फोड़ और ट्रेन रोक रहे है। इसके लिए कौन जिम्मेदार है?

किसी भी देश की ईकाई उसका समाज होता है, समाज की ईकाई परिवार और परिवार की ईकाई व्यक्ति होता है। सुधार निचले स्तर यानि व्यक्ति के स्तर पर ही करना पड़ता है और व्यक्ति के सुधरने की ईकाई मां और शिक्षाव्यवस्था है। यदि दोनों सही से काम करें तो निश्चित ही नई बयार बह सकती है।

भारत में संसाधनों की भी कमी नहीं है बस उसका वितरण सही ढंग से हो। नीति, नैतिकता और नियम लागू हो। प्रत्येक नागरिक सहयोग और श्रम दे। तभी समाज मजबूत होगा और देश को मजबूत बनायेगा तभी मानवता को भी प्रश्रय मिलेगा।

समाज सुधार सामाजिक स्तर पर हो राजनीति से सुधार का रास्ता न खोजा जाय नहीं तो हम इसी में उलझ कर रह जायेंगे। हर पांच साल में वोट कर परिवर्तन की आशा धूमिल होते देखते रहेंगे। समाज में सबको अच्छे हैं मान कर चलना होगा, सिर्फ आपके अच्छे होने से कुछ नहीं होगा। भारत की जनसंख्या भी तो 135 करोड़ है। पूरे यूरोप, अमेरिका और दक्षिण अमेरिकी महादीप से ज्यादा इसलिए हमें इसके लिए उद्यम भी अधिक करनी पड़ेंगी।

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Usha
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4 years ago

Bhut hi bdiya lekh supper se bhi uppar.

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