केंद्र से लेकर राज्यों के चुनाव में कांग्रेस का ग्राफ लगातार गिर रहा है। ऐसा क्या हो गया जो कांग्रेस को पतन की ओर ले जा रहा है? क्या कांग्रेस की जो नीतियां अभी तक लाभदायक थीं, वही उसके पतन में सहायक बन गयी हैं?
कांग्रेस की घोषित नीति रही है “सेकुलरिज्म” और “मुस्लिम तुष्टिकरण”। जबकि अघोषित नीतियों में हिंदुत्व को हतोत्साहित करना, मुस्लिम को बढ़ावा देना, देश का विभाजन करने वाली शक्तियों को तब तक संरक्षण देना जब तक वह सत्ता के लिए चुनौती न बन जाय, आदि शामिल रहा है। यही मुस्लिम लीग, खलिस्तानी, लिट्टे, PFI, सिम्मी और अन्य कट्टरपंथी मामले में देखा गया है। बंटवारे के बाद लोग शांति चाहते थे जो उन्हें गांधी – नेहरू में दिखाई दिया। दूसरा महत्वपूर्ण तथ्य यह था कि उस समय कोई विकल्प भी हिन्दू के पास उपलब्ध नहीं था, अभी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को भी बहुत दूर सफर तय करना था।
नेहरू ने देश को “सेकुलरिज्म” की ओर खींचा तो इंदिरा को 1971 में बांग्लादेश का बंटवारा कराने के लिए वामपंथियों से समझौता करना पड़ा लेकिन तुष्टिकरण बदस्तूर जारी रहा। 1980 के बाद के दशक में कांग्रेस हिन्दू त्यौहार, संस्कार, धार्मिक चिन्ह, धर्म को निशाना बनाने वालों और धर्मांतरण करने वालों के साथ वोट की विवशता के कारण नजदीकियां दिखाना पड़ी साथ ही कांग्रेस के उच्च नेताओं की कुछ मजबूरियां निजी भी थीं।
अब भारतीय राजनीति में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का जन्म हो चुका था। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एक मजबूत संगठन बन चुका था। तमिलनाडु में दलितों के धर्मांतरण और रामानंद सागर के “रामायण सीरियल” ने मन्दिर राम मंदिर की अस्मिता को उभारने का कार्य किया। इसी दौर में कांग्रेस के अंदर से नई पार्टियां जन्म लेने लगीं जिनका मूल आधार भी मुस्लिम वोट था।
आजादी के पूर्व जिन्ना कांग्रेस को बार – बार हिंदुओं की रहनुमाई वाली पार्टी कहा करते थे जब ऐसे कई महत्वपूर्ण नेता कांग्रेस में शामिल थे जो हिन्दू हितों से समझौता नहीं चाहते थे जिसमें तिलक, मदनमोहन मालवीय, डॉक्टर हेडगेवार, वीर सावरकर और श्यामाप्रसाद मुखर्जी आदि महत्वपूर्ण व्यक्तित्व थे जिन्हें भारतीय संस्कृति पर गर्व था।
यह लोग देश का स्वदेशीकरण चाहते थे क्योंकि बटवारे के समय जिसतरह रक्तपात हुआ और धर्म के नाम पर भारत के टुकड़े किये गये वहाँ मुस्लिम की पहचान के लिए भारत में रह ही क्या जाता? आज जबकि बगल में पाकिस्तान तैयार है तब मुस्लिम खेती जैसे जाकिर नाईक, ओवैसी, PFI या मुस्लिम कट्टपंथी संगठन चाहते हैं उन्हें पाकिस्तान या किसी अन्य मुल्क जाना चाहिए।
भारत में न हाड़ी चढ़ेगी, न दाल गलेगी इसका मुख्य कारण यह है कि अब भारत का हिन्दू सेकुलरिज्म, वामपंथ को समझ चुका है। उसके अधिकारों की बात करने वाली केंद्र से लेकर राज्य स्तर तक एक मजबूत पार्टी है। वह पूर्व में हुए उनके मंदिरों के अपमान को अब बर्दास्त करने के मूड में नहीं है।
कांग्रेस का खिसकता जनाधार उसे दुविधा में डाल दिया है कि 70 साल तक सत्ता के लिए चली वह विचारधारा 2014 के बाद क्यों नहीं चल पा रही है? कांग्रेस के अंदर आवाजे उठाने लगी हैं कि पार्टी को लोकतांत्रिक बनाया जाय – जी-23। साथ ही हिंदुत्व और हिन्दू संस्कारों का सम्मान करते हुए साफ्ट हिंदुत्व पर आया जाय ठीक उसी तरह जैसे आजादी के पूर्व की कांग्रेस थी लेकिन आज की कांग्रेस पर विदेशी कसीदाकारी कुछ ज्यादा गढ़ दी गयी है।
मुस्लिमों को राजनीति की दुकान चलाने के लिए जिस तरह डराया और भड़काया जा रहा उससे नुकसान अंततः मुस्लिमों का ही होगा क्योंकि उन्हें भारत की जमीनी हकीकत पता है अब “आलू चाहे चाकू पर गिरे या चाकू आलू पर दोनों स्थितियों में आलू को ही कटना होगा”। मुस्लिम नेता, पीर, हकीम, मौलवी और मुस्लिम हितों वाली पार्टियां जो कर रही हैं उससे कहीं न कहीं वह भारत में उन्हें “रोहिंया” बना रही है जो आने वाले समय मे विध्वंसक स्थिति को जन्म देगा।
आतंकवाद, कट्टरपंथ, देश विरोधी, टुकड़े गैंग आदि को जब देश के अंदर समर्थन नहीं है तो यह ताकतें कैसे दिखाई पड़ रही हैं? न यह मध्यकाल है और न ही बर्बर मुस्लिमों का दौर, यहाँ तकनीकी और शिक्षा का भी बोलबाला है। भारत विश्व का नेतृत्व करता दिख रहा है, देश की पहुँच अंर्तराष्ट्रीय राजनीति में पिछले कुछ वर्षों बहुत तेजी से बढ़ी है।
गलतियों को स्वीकार करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि वहीं से सुधार शुरू हो जाता है। जिस तरह से राहुल गांधी ने “इमरजेंसी” पर गलती स्वीकार की है उसी तरह कांग्रेस पार्टी की कुछ गलतियां और हैं जिन्हें स्वीकार करने से सुधार की प्रकिया को आरम्भ किया जा सकता है। इससे फायदा यह होगा कि बार – बार गलती मानने की झंझट से छुटकारा मिल जायेगा।
लोकतांत्रिक राजनीति में हवा का रुख अर्थात जनता के मूड को पहचाना पड़ता है। कांग्रेस की दुविधा यह है कि केंद्र में बीजेपी की चुनौती है ही साथ ही राज्यों जहां बीजेपी नहीं है वहाँ क्षेत्रीय दलों ने मुस्लिम वोटों में सेंधमारी कर ली है। केरल की मुस्लिम लीग, तमिलनाडु में द्रमुक, आंध्र में ओवैसी, UP में सपा, बिहार में RJD, बंगाल में वाम – ममता के बाद पीरजादा, असोम में AIUDF, दिल्ली में आप जहां सबसे बड़ी दुविधा कांग्रेस के लिए मुस्लिम वोट बैंक को लेकर रही है।
इन परिस्थितियों में कोंग्रेस चुनावी बिसात कैसे बिछाए? शतरंज में एक समय स्थिति ऐसी आती है जब हमें पता होता है कि इस चाल को चलने से मेरा हाथी, घोडा या प्यादा मारा जायेगा फिर भी चलना पड़ता है। आप वजीर की चाल पर अब विश्वास रखें क्योंकि खेल अभी जारी है।
राजनीति में एक दो हार से सब खत्म नहीं होता है, हमें इंदिरा गांधी के इमरजेंसी के बाद वाले ‘कमबैक’ को नहीं भूलना चाहिए। यदि नीतियां और नेता अच्छे हैं तो विकल्प अभी भी खुला है। लेकिन यह भी ध्यान रहे कि आप के कारनामें और वक्तव्य से बहुसंख्यक जनता इस तरह न चिढ़ जाय कि जमानत ही जब्त करा दे।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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