मम संसारा

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Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩

जगत में अच्छाई और बुराई का संघर्ष सदा से रहा है और आगे भी रहेगा। बुराई का आरंभ भी स्वयं से ही होता है। हम अपने विचारों का जो ताना-बाना बुनते हैं; वही सत् होता है बाकी असत्। मेरे स्वयं का विचार अपने हित तक सीमित हो गया है। हम मात्र वही विचारधारा मानने को तैयार हैं, जिससे हमारे स्वार्थ की पूर्ति होती है।

कुछ उदाहरणों से इसे समझते हैं :

कोई घूस ले रहा है, भ्रष्टाचार में लिप्त है, नशा कर रहा है, इस स्थिति में उसे इन सब में बुराई नहीं दिखती है। लोकतंत्र को ही लें, लोकतंत्र के कारण जो व्यक्ति वृद्धावस्था पेंशन, मुफ्त राशन, किसान राहत योजना, आरक्षण, प्रधानमंत्री आवास, उज्ज्वला योजना आदि से लाभान्वित है, उसके लिए सरकार अच्छी है और यही लोकतंत्र अच्छा है। वह इसी अंग्रेजी नकल के संविधान को अपने भगवान द्वारा लिखा बताकर प्रचारित कर रहा है। वह बात-बात में संविधान बचाने, सेक्युरिज्म बचाने और डेमोक्रेसी बचाने की बात कर रहा है। यह सिस्टम से लाभ पाया वर्ग है। और जिसे सिस्टम का लाभ मिलता है वह डेमोक्रेसी हो, थियोक्रेसी हो, मोनार्की हो, कम्युनिज्म हो यहाँ तक कि इस्लामी या तालिबानी ही हो, किसी के साथ खड़ा है, बस उसका हित सधे।

सर्वे भवन्तु सुखिनः –

यह सनातन धर्म का मुख्य उद्घोष है कि सभी सुखी हों।

इस उद्घोषणा को आत्मसात करने पर मुख्य समस्या है स्वयं का (भाग) अन्य के लिए छोड़ना। आपके सुख में थोड़ी कटौती का अर्थ है अन्य के खुशी में कुछ अधिक जुड़ाव।

दान और दया करने से आपके मूल स्वभाव में परिवर्तन आता है, अपने से आगे बढ़ कर अन्य प्राणियों के लिए भी आप सोचते हैं। यह संकुचन न होकर स्वयं से स्वयं का विस्तार है, जो हममें है वही सब में है। सकल सर्वांगीण विकास। ऐसा विकास जिसमें मनुष्य मात्र ही नहीं वरन समस्त प्राणी मात्र शामिल हैं।

मनुष्य जीवन का उद्देश्य –

मनुष्य जीवन का उद्देश्य क्या कहा जाए? खा पीकर, जीव-जंतु आदि का भक्षण कर, नर पिचाश की संतति वृद्धि कर क्या हम इसी के लिए मनुष्य बने थे कि कोई हमें इस पृथ्वी पर दो लोगों के समागम के पश्चात फेंक दिया था? अपने को नेता बनाने के लिए वर्गीय संरचना रूपी माया जाल फेर दिए हैं, यह मेरा वर्ग या तेरा वर्ग। इस वर्ग में वह मनुष्य कहाँ गया जो धरती का देवता बनना चाहता था?

लाभ-हानि, जय-पराजय, मेरा-तेरा, किसका, किससे और क्यों हो रहा है। सत् का नजरिया देशानुकूल कैसे हो गया। रूस, भारत जिसे सही कह रहे हैं, अमेरिका, चीन, ब्रिटेन उसे ही गलत कह रहे हैं। मनुष्य में ही मतैक्य नहीं है, उसके समाज और देश में कैसे दिखाई देंगे।

नोट: क्या आपने कभी सोचा है कि आप मनुष्य हैं?

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
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