राजनीति में चरित्र, नैतिकता बहुत कम लोगों के पास होती है। जो कार्यकर्ता सालों पार्टी की सेवा और विचारधारा के विस्तार में लगा रहता है, वह टिकट नहीं पाता। वह कार्यकर्ता ही रहता है।
स्वार्थ ऐसा है कि हम अपनी योग्यता न देख कर एक ढुलमुल चरित्र का बखान करने लगते हैं। ईश्वर किये गये पाप का दंड देने में सक्षम है। और कलयुग 100 साल और चार पीढ़ियों के भीतर ही न्याय करता है। किसी को राजा किसी को रंक और किसी को विदूषक बना देता है।
योग्य व्यक्ति को स्वयं के विश्वास को जीतना होगा। कमतर या हीरोज्म से निकलना पड़ेगा। दुनियां में मात्र 2 प्रतिशत अच्छे और 6 प्रतिशत बुरे लोग होते हैं। इन्ही दोनों का द्वंद होता है। इसमें जो जीतता है, बाकी 92 फीसदी उसी के साथ हो जाते हैं। तो विक्टिम कार्ड खेलने की बहुत जरूरत नहीं है। कभी आप की बारी थी आज मेरी है।
माटी कहे कुम्हार से तू क्या रौंदे मोय ।
एक दिन ऐसा आयेगा मैं ही रौंदी तोय ।।
अब रही शिक्षा की बात, तो साक्षर सब हो सकते हैं। रोजगार भी मिल सकता है। किंतु शिक्षित मात्र 5 प्रतिशत हो पाते हैं और बच्चों के पीछे लट्ठ लिए दौड़ रहे हैं कि पढ़ो- पढ़ो।
लब्बोलुआब यह है कि वस्तु स्थिति से बच कर भावना की नदी में गोते लगाने लगते हैं। काश ऐसा होता तो कैसा होता। यदि हम इतिहास और समाज पर दृष्टिपात करें तो जो प्रश्न हमें विचलित कर रहा है, उसका उत्तर वहीं मिल जायेगा।
हमनें क्या खोया और क्या पाया? कल तक जो हमसे प्रेम करते थे, आज नफरत क्यूँ करने लगे? ये अतीत हमें सिखाता है। बस आप को झोली खोलनी होगी।
हर हर महादेव! जो ईश्वर आपमें है वही मेरे में निवास करता है।