हमें अपनी प्राथमिकता बदलनी पड़ेगी, विकास प्रकृति में निहित है जिसे हमें संवहनीय तरीके से अर्जित करना है। जितनी भूमि, वायु या जल है, यह सभी की है। प्रकृति के साथ संतुलन बैठाने में ही मानव की भलाई है नहीं तो जंगल, ग्लेशियर, पहाड़, समुद्र की गहराई आदि में तरह – तरह के वैक्टीरिया और वायरस दफन हैं जो मानवीय कार्यों से बाहर आ रहे हैं।
प्रकृति की विविधताओं को रौंदते हुए हम विकास की भूलभुलैया बना रहे हैं। तरह – तरह के जीव जन्तु जो प्राकृतिक संतुलन के वाहन हैं, जिन्हें हम भोजन मान रहे हैं, खा ले रहे हैं। काश मानव ने ऐसा नहीं किया होता तो ये हैजा, चिकेन/स्माल पॉक्स, फ्लू, इन्फ्लूएंजा, इबोला और कोरोना जैसे रोगाणु और विषाणु आज मानवता पर कहर बन कर न टूटते।
कोरोना का संक्रमण मुझे होने के बाद बुखार में मुझे कई दिन ऐसा लगा कि आज ये दवा लेकर लेट तो रहे हैं लेकिन अब दुबारा नहीं उठेंगे। किन्तु जीवन में प्रियजनों का प्रेम और हमारे कुछ पुण्य शेष थे जिससें यह पुर्नजन्म रूपी जीवन मिला है, ईश्वर के आदेश से कि कुछ कार्य तुम्हारे शेष हैं उन्हें पूरा करो। मेरी प्राथमिकताएं बदल गयी हैं। हाँ एक चीज और, मेरी देवी जी का विश्वास बहुत मजबूत रहा है कि मैं अभी नहीं मर सकता हूँ। नये जीवन का स्वागत करना ही होगा.. कुछ तो करना होगा। आगे की डगर का देखना होगा, मांझी पतवार किधर ले जाता है।
जीवन और मौत के बीच बहुत ही महीन डोर का अंतर है, अब देखना है मर कर मिले जीवन रूपी नैया को कहाँ तक ले जा पाते हैं। कहते हैं ऐसा करके मौत सांसों की कीमत का एहसास कराती है। जिस सहजता से यह जीवन और प्रकृति प्राप्त हुई है, उसपर जब कोई संकट आता है तो हम बहुत जल्द जीवन जीना हारने लगते हैं, सारे बने बनाये सिद्धांत रेत की ढेर की तरह ढहने लगते हैं। हम उस देव का स्मरण करते हैं कि हे देव! मुझे इस भयंकर पीड़ा से उबारिये। जब हमारे सारे करतब खत्म हो जाते हैं, मुँह से बरबस निकलता है “हारिये न हिम्मत विसारिये न राम।।”
मैं नवरात्रि में व्रत पूरा करके कोविड के भय से अलग प्रयाग से दूर दिल्ली के एक फ्लैट में जिसे मैं कबूतर खाना कहता हूं, अपने काम पर लगा था। थोड़ी भी शंका न थी कि कोरोना अपनी जाल में हमें फंसा लेगा।
लेकिन जब बुखार आना शुरू हुआ तो कोविड के तहत ली जाने वाली दवा, प्रयाग में भैया जो कोविड टीम में हैं, हमें बताये। हम एजथ्रोमाईसीन, आइवरमैक्टीन, डॉक्सी, जिंक, विटामिन सी, बी कॉम्प्लेक्स का पूरा 10 दिन का कोर्स पूरा किये। काढ़ा, भाँप, गुनगुना पानी, फल, पौष्टिक भोजन और पॉजिटिव थिंकिंग के साथ ईश्वर में असीम आस्था रखे लेकिन यह बुखार जाने का नाम नहीं ले रहा था। नींद आनी बन्द हो गयी। मैं घर से बहुत दूर था, कोई पास से मन की चिकित्सा कराने वाला भी नहीं था। मैं घर में अपनी बीमारी भाई के अलावा किसी को नहीं बताया क्योंकि घर में भी सभी लोग पहले से ही बुखार की चपेट में थे।
एक रात लगा कि यदि मैं पांचवी मंजिल के फ्लैट में मर गया तो मेरी लाश यहीं सड़ जायेगी और किसी को पता भी नहीं चलेगा। मरना भला विदेश में जहाँ न अपना कोय। माटी खाय न कौवा अग्नि देय न कोय।।
रोज घर से सूचना मिलती कि फलां रिश्तेदार पत्नी सहित आज मर गये, आज के दिन में रिश्तेदारी से चार लोग कम हुये हैं। न्यूज चैनल का खैर क्या कहना, वह तो श्मशान की रूहानी कहानी बता – बता कर कार्यक्रम जारी रखे हैं। कोई मरे, गिद्ध को तो लाश से मतलब है।
दिल्ली में भी मौत का भयानक मंजर चल रहा था। ऑक्सीजन और इंजेक्शन का ऐसा खुला खेल फर्रुखाबादी जारी रहा है कि दलाल आपदा को अवसर में बदल कर मौत में मुनाफा निकाल रहे हैं। घिन आ रही थी कि इन्ही मनुष्यता के जमात के हम भी हैं जिसके लिए धन ही सब कुछ है, तुम मरते हो तो मर जाओ।
जीवन की आशा धूमिल होती जा रही थी, मौत मेरे आस – पास आशियाना बना चुकी थी, बार – बार कहती चलो तुम्हारा कार्य पूरा हुआ, मुझे भी लगने लगा था कि मौत सही कह रही थी।
मुझे माता – पिता और मेरी देवी का ख्याल बार – बार आता कि मेरे मरने पर यह कैसे जियेगें। परन्तु यह मौत है किसी के होने से इसके व्यवसाय पर कोई फर्क नहीं पड़ता है।
कोविड कैसे भी फैला हो, उसके विस्तार के कारण के पीछे चीन या कोई और कुछ भी हो सकता है लेकिन इसने विश्व भर की व्यवस्था की नकेल खोल दी। मानव को एकबार पुनः सोचने पर विवश किया है कि जिस प्रकृति का शोषण करके हम विकास का दावा कर रहे हैं, वास्तव में वह विनाश है।
मेरी प्राथमिकताएं बदल गयी हैं। नये जीवन का इस्तकबाल करना ही होगा, अभी बहुत कुछ बाकी है, आगे की डगर का पतवार फिर से मांझी के हाथ में है। मौत सज – धज के आती है, आखिरी सत्य तो वही है। लेकिन मुझे तो बहुत नीरस सी जान पड़ी। जिंदगी की जद्दोजहद में 20 दिन बाद जीवन ने फिर ताना बुना और कहा कि आओ मिलकर एक बार फिर से बगिया सजाते हैं।
जीवन और मौत के बीच बहुत जो महीन डोर का अंतर है, क्या एक बीमारी इसे इतना कमजोर कर देती है? हम मौत के मुसाफिर बनने के लिये स्वयं कहने लगते हैं। इतना हैरान, परेशान और विवश! अब देखना है कि मर कर मिले इस जीवन रूपी नैया को कहाँ तक ले जा पाते हैं।
May you fully recover soon…our priorities have never been straight as humans and you very rightly point that out too. Our lifestyles have to change.
Well…stay blessed
Haré Krishna 🙏
भईया जी हम भी यहाँ प्रयाग में कुछ ऐसा ही अनुभव किये घर से 270 km दूर यहाँ प्रयाग में वायरल फीवर से अचेत,लेकिन यहाँ साथ में बड़े भाई जी थे,जो सब तरह से रक्षा किये। अब फीवर से तो राहत मिल गया है, लेकिन शरीर के सभी अंगतन्त्र शिथिल पड़ गये है, धीरे-धीरे क्षतिपूर्ति हो रही है। मृत्यु से भेंट किया हूँ इस बार, सोच रहा था की माँ को वचन दिया हूँ की… Read more »