हिंदू, मानव की कमियां नहीं देखता है, उसका मानना है कि मानव है तो मानवता का पालन करेगा। जिसके कारण व्यक्तिगत स्तर पर न सही, सामाजिक स्तर पर मुस्लिमों को स्वीकार किया गया। यदि सौहार्द नहीं होता तो भारत से जाना ही पड़ता जैसा पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में हुआ। किसी मुस्लिम देश में अन्य धर्म के व्यक्ति का रहना क्यों बहुत कठिन है?
ये तो अरब से नहीं आये हैं लेकिन प्रेम वही है, वास्तव में यह तो यहीं के लोग हैं जिन्हें बाहर के मुस्लिम हिंदू कहते हैं। मक्का में भारतीय उपमहाद्वीप के मुस्लिमों की अलग लाइन लगती है। जिन्ना मुल्क बाट कर तो चले गए लेकिन आज भी नेता बने हैं, कम से कम अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्टूडेंट गैलरी तो यही दिखाती है जिसमें जिन्ना कि फोटो लटकी है।
ISIS के उभार के समय कुछ भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमान खलीफा की सेवा में जिहाद करने पहुचे भी थे लेकिन इराक में कभी बंदूक पकड़ने को ही न मिली, शौचालय साफ करवाया गया और समान ढोने वाले पिठ्ठू बने रहे। चंद मुसलमानों की सियासत चमकी रहे, कुछ सत्ता पा जाएं, उसके लिए वह सामान्य मुस्लिमों का जीवन जहन्नुम बना देगा। मुसलमान सुधार नहीं कर सकता, उसका कहना है कमियां ही नहीं हैं।
यदि कमी नहीं है तो रोज बम क्यों फट रहे हैं? यह धर्म के नाम पर जिहाद है फिर भी आतंकवाद का धर्म नहीं है। मुसलमान प्रेम, सौहार्द, शांति में विश्वास या इत्मिनान करता है? उसके 54 मुल्कों में तो अभी भी शान्ति की खोज ही चल रही है। वह भारत को कैसे शांत रहने देगा? बलूचिस्तान में झंडा फहराना शुरू हो गया है बस इसको भारत एक बार फिर बांग्लादेश की तरह मुक्त करा के पाकिस्तान को बलूचिस्तान और सिंध के टुकड़े में विभाजित कर दे। स्थायी शांति तब आयेगी जब Pok भारत का हो और पाकिस्तान कई टुकड़े में विभाजित हो।
पाकिस्तान को बालाकोट और 370 की बड़ी पीड़ा है, मोदी जी का शासन बड़ा बुरा है। उसके लिए तो शासन वह अच्छा था जो 26/11 हमले पर मुंह से मिसाइल छोड़ खानापूर्ति कर लिया। जब देश के शहरों में रोज बम फूट रहे थे, तब अच्छा था। अब क्यों सर्जिकल स्ट्राइक हुई? उससे थोक वोट गड़बड़ा जायेगा, यही विचार आज कांग्रेस के पैर राजनीति से उखाड़ दिये। निति ही बन गई कि शब्द वही बोलो जिससे ज्यादा से ज्यादा जहर घुल सके, राष्ट्र कमजोर हो।
सम्प्रदायिकता की मोहरे किसने चली? जब मात पर मात मिल रही है तब संविधान और लोकतंत्र की दुहाई। टूटते जातीय तिलिस्म में कांग्रेस के लिए सत्ता की कुंजी खोती जा रही है। वह अपनी तरफ से पूरी ताकत लगाएं हैं, पुरानी व्यवस्था की बहाली के लिए सभी छंगू – मंगू लगे हैं। टुकड़े वाली गैंग, तथाकथित बुद्धिजीवी, सो कॉल्ड सेकुलर सभी जी जान से जुटे हैं।
अभी तो 50% में यह हाल है जिस दिन मुस्लिमों की तरह हिंदू 100% एक हो कर वोट करने लगे तो मुसलमानों को तो वोट देने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
2014 में उन्हें लगा कि दंगे से आ गये। अबकी बार की सुनामी सोने नहीं देती, रोने नहीं देती ऊपर से भय भी है। इन सब के लिए मोदी जी ने संसद में विश्वास के लिए अल्पसंख्यक कहा है। लेकिन विश्वास स्तरहीन और लोभी नेता में दिखता है जो इन्हें गरीबी में रहने पर विवश किया। अब तो कांग्रेसी भी कह रहे हैं कि मोदी को विलेन के रूप में पेश करने से ज्यादा अच्छा है, मोदी मॉडल को समझा जाय।
एक नई कवायद शुरू हुई, इन्हें समझ नहीं आता कि ये जोड़ रहे हो कि तोड़ रहे हो? एक तरफ तैमूर मुर्दाबाद और दूसरे तरफ बच्चों के नाम तैमूर रखे जा रहे हैं। हम सब छद्म विश्वासी नहीं, ऊपर से भारत के अंदर से गाली। यही तो कह रहे हैं कि भारतीय मुस्लिम वही करता है जिससे हिंदू चिढ़े, क्या नाम की कमी है? हिंदूओं ने कभी रावण, कंस, हिरण्यकश्यपु आदि नाम नहीं रखा लेकिन यहाँ तैमूर, गजनवी हीरो हैं। लव इफेक्ट को देखते हैं तब मुझे इलाहाबाद हाईकोर्ट की याद आती है। 90% लड़की भगाने में मुस्लिम ही क्यों रहता है? एक दिन आगरा से एक लड़की भगा कर लाई गई, वहां तीन मौलवी पहले से पहुचे थे मैंने पूछा कि काफिर से निकाह कराने को मंजूरी देगें? उन्होंने कहा इश्क है और लड़की को कलमा पढ़ा देगें। मैने कहा इश्क है तो लड़के को हिंदू भी तो बना सकते हैं? पीछे की सियासत के लिए आँख खोलनी होगी। विदेशी विचार धारा मिली थी, भारतीय सांस्कृति भी देख लेते। कबीर बाबा कहते हैं:
साईं इतना दीजिये जामे कुटुंब समाय।
मैं भी भूखा ना रहू साधू भूखा न जाय।।ना कुछ देखा राम भजन में ना कुछ देखा पोथी में।
कहत कबीर सुनो भाई साधो जो देखा दो रोटी में।।
लेकिन यहाँ तो विदेशियों और मैकाले वाली विचारधारा से ग्रसित हैं, बुर्जवा वर्ग वाले देश पूँजीपति हो गये लेकिन भारत के वामी – कामी 2 सीट के बाद भी सपने देख रहे हैं। इन्हें भरतीय संस्कृति कमतर लगती है। दोष भी क्या, उस समय समाजवाद, मार्क्सवाद फैशन भी रहा था। फासिज्म और नाजी को जन्म पूंजीवाद और समाजवाद ने ही दिया। अंग्रेज विजेता था तो विजित पर गढ़ा हुआ इतिहास थोप दिया।
प्रथम विश्वयुद्ध और द्वितीय विश्वयुद्ध साम्रज्यवाद को बचाने के लिए हुआ था, मानवता के लिये नहीं। भारत की बौद्धिकता का ही परिणाम था जो फासीवाद से भारत को नुकसान नहीं हुआ, 200 साल साम्राज्यवाद ने गुलाम बनाया लेकिन उसकी कही आलोचना नहीं करेंगे। जैसे, USA से सम्बन्ध रखना है तो पेप्सी, कोक बेचना है, वैसे ही बौद्धिक होने का पुराना पैमाना है, अंग्रेज अच्छे थे भारत बुरा था। लंदन बढ़िया शहर है आदि आदि। स्तरहीन बात नहीं की जाती बाकी कितने पंजीरी खा के विचारधारा को पतंग बना के खिसियाहट में आपा खो चुके हैं, भैय्या देख रहे हैं किस प्रकार का जबाब दे रहे हैं। यह छद्म बौद्धिकवाद भारतीय संस्कृति को ईश्वर अल्लाह में ले कर चला गया। जिस देश के पास इतने संसाधन थे उसे पाकिस्तान रोज आंख दिखा रहा था।
आज भी जिस देश में मुस्लिम ज्यादा हुआ वह इस्लामिक देश कैसे हो जाता है? गाम्बिया अभी कुछ दिन पहले ही हुआ। जहाँ मुसलमानों की संख्या कम है वहाँ सेकुलर की मांग क्यों की जाती है? दुसरों के तरीके से रहना भी सीखा जाय तो क्या बुराई है? उदारता में फलसफा क्या है। विश्व में हिन्दू से उदार कोई कौम नहीं है लेकिन बदले में क्या पाया। टुकड़े – टुकड़े का भारत और गुलामी? अब बहुत हुआ हमने भी मुसलमानों से सीख लिया जिसको वोट दो पूरा दो।
जिस हिंदू समाज को कांग्रेस ने टुकड़ो में बाट दिया था, जैन, बौद्ध, सिख फिर आपार जातियां वह मोदी के लिए एक हुआ। क्यों देश के अंदर आतंकी वारदाते बंद हो गई? गोडसे ने गांधी का वध करके गलत क्या किया?
ईश्वर अल्लाह गा – गा कर देश के टुकड़े करवा दिये, लाखो बेघर और हजारों मारे गये, औरतों की आबरू लूटी गई। उस पाकिस्तान को 55 करोड़ दिए जिससे वह आतंकी कैम्प बनाये और विस्फोट भारत में करे।
मुस्लिमों ने यहाँ रहना सीखा है? यदि हाँ तो जद्दोजहद खत्म। गौरतलब है कि जिस तरह भारत में राम मंदिर का विवाद है, किसी अन्य मुस्लिम देश में होता तो वह तोप चलवा कर बनवा देता। पूर्ण बहुमत की सरकार फिर भी कोर्ट का इंतजार। मुसलमान बच्चों को डरा कर ऐसे ही आतंकवादी बनाया जाता था।
विश्व भर में क्या पड़ोस के पाकिस्तान में ही देखिये, मुस्लिम क्या कर रहा है? मस्जिद और स्कूल में बम फुट रहे है। भारत में बम फूटते थे तो क्या पूछते थे कि क्या तुम हिंदू हो, मरते तो सभी हैं।
भारत की संस्कृति को अपनाइये, अरब नहीं ये आपका मादरेवतन है, इससे जो गद्दारी करता है, द्रोह करता है उसे जहन्नुम में भी जगह नहीं मिलती है, ऐसा कुरान में कहा गया है। गलतफहमियां नहीं हैं, वह बच्चा कसाब 200 जीन्स नहीं पाया था जो मुल्ले उसे ह्यूमन बमिस्ट बना दिये।
अल्जीरिया, सीरिया, यमन, इराक़, ISIS, बोकोहराम, सूडान, नाइजीरिया, अफगानिस्तान या पाकिस्तान में जो हो रहा है, वह सही है? कितने मुस्लिम देश हैं जहाँ अमन शांति है? इंडोनेशिया और मलेशिया था तो अब वहाँ भी शुरू है सनद रहे कि आज कल आतंकी जाकिर नाईक भी वहीं है।
मैं आप को 2040 तक का भविष्य बता सकता हूं, तब तक सत्ता राष्ट्रवादियों के हाथों में ही रहेगी। कांग्रेस की जाति – धर्म की राजनीति खत्म अब हिंदुत्व की बृहद विचारधारा जो राजनीति के धरातल पर सबका साथ, सबका विश्वास पर आधारित है, सब को लेकर चलेगा। अब धर्मांतरण का खेल भी बन्द होगा।
धन्यवाद कांग्रेस को जिन्होंने ‘हिंदू आतंकवाद’ का नाम दिया, धन्यवाद ममता बनर्जी को जिन्होंने राम का विरोध किया, धन्यवाद कन्हैया की टुकड़े गैंग को, धन्यवाद बालाकोट पर सबूत मांगने वालों को जिन्होंने हिंदूओं को एक कर दिया। विशाल जनमत 303, शांति कौम गायब। यही कांग्रेस और क्षेत्रीय दल की साजिश थी, मुस्लिम खूब बच्चा पैदा कर गरीब और ठगा वोटर बना रहा। आगे भी यही नकारात्मक प्रचार करिये और कुछ हिंदू जो कि जाति की पार्टी पर भगा है वह भी लौट आयेगा।
क्यों राष्ट्रगान नहीं गाना, राष्ट्रगीत नहीं गाना, गाय को सस्ता मीट बताना, अयोध्या, मथुरा, काशी आदि में मंदिर पर विवाद करना, इसी कांग्रेस सरकार ने आजमगढ़ को आतंकी फैक्ट्री घोषित किया, बटाला इनकाउंटर किया। क्या कश्मीर में इनके समय हिंसा नहीं हुई? कर्फ्यू आयात नहीं किया गया?
रोहिंग्या से हमदर्दी कश्मीरी पंडित पर शांत? एक बार अलीगढ़ विश्वविद्यालय हो लीजिये जब इंडिया पाकिस्तान का मैच हो या भारत का किसे मुद्दे पर समर्थन कर के देखिये क्या हाल बनाते हैं। धर्म के नाम पर, बटवारे पर खून पहले ही बह चुका।
आतंकी जाकिर नाईक की कुछ भड़काने वाले मटेरियल मुस्लिम देश बांग्लादेश के रेस्टोरेंट हमले में मिले, वही श्रीलंका ईस्टर पर चर्च हमले में बरामद हुये। उसके तार केरल और तमिलनाडु की तंजीमो से जुड़े हैं यह श्रीलंका ने बताये हैं। फिर भी वह आतंकवादी विचारक नही है, ऐसा ही कुछ फिरकापरस्तों का मानना है।
जिसे भारत सरकार ने भगोड़ा घोषित किया है। इस सब के बाद भी नहीं मानना, लगातार मुसलमानों को मुख्य धारा से अलग करता जा रहा है। अब तो मलेशिया ने भी प्रतिबंध लगा कर भारत की बात की पुष्टि कर दी है। कल तक सोशल मीडिया पर मुसलमान सबूत के रूप में नाईक को बताता था।
काबा, मादरेवतन को मानना है या विदेश में, तो फिर निश्चित ही स्थिति दिनोंदिन और खराब होगी। इस लिए प्रचलित विश्व आतंकवाद से मुस्लिमों को आंतरिक स्तर पर सदभाव नहीं होता तो आज ये विभत्स तांडव नहीं होता। ISIS में जिस समय बगदादी उफान पर था तब मेरे भी कुछ मुस्लिम दोस्त यजीदियों को काफिर और विधर्मी कहते थे, कहते थे बगदादी ठीक कर रहा है, वह नया खलीफा है। मिश्र के सईद अल कुस ने 1969 में फिलीस्तीन मसले पर पहली आतंकवादी कार्यवाही की। इसी को पहला आतंकवादी माना जाता है। ओसामा बिन लादेन इसी का मुरीद और शागिर्द था।
आतंकवादी घटना किसी की हत्या को नहीं कहा जा सकता। हत्या से लोगों में दहशत पैदा करना और राजनीतिक इच्छा को सम्मिलित होना आवश्यक है।
यह आतंकवाद की प्रचलित परिभाषा है जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ, भारत सरकार, प्रशासनिक सुधार आयोग और सुप्रीम कोर्ट ने दी है, उसमें ही रख कर देखिये, गोडसे कैसे आतंकवादी हो गये? यदि वे हैं तो अबुबकर को पहला आतंकवादी घोषित करो जिसने नवी का घर लुटवा दिया। यजीद, जिसने हसन हुसैन का कत्ल करवा दिया।
तीन तलाक की जलालत से मुसलमान औरतों को निकलना बहुत आसान नहीं था, नारी को पाखंड की भेंट कैसे चढ़ने दे सकते है? विवाह को कांट्रेक्ट कह कर मुता और हलाला कैसे कर सकते है। लेकिन हालत यह है कि बुर्के में महिला सड़ जाय लेकिन ये अरबी नकल है तो बन्द न होने देंगे। एक तो काला दूसरे पॉलिस्टर जो ऊष्मा को अवशोषित कर लेता है। बच्चों की कितनी संख्या हो इस पर बात न होगी, दस बच्चे के बाद भले वो गरीबी और गंदगी में मरे।
सोचने वाली बात है कि एक तरफ पाकिस्तान दुःखी है, भारत में गद्दार और भ्रष्ट्राचारी दुःखी हैं। कहते हैं लोकतंत्र को खतरा है लेकिन लोकतंत्र और संविधान को खतरा कैसे है, यह स्पष्ट नहीं करते।
नैतिकता और उसका आचरण करना ही मनुष्यता है। मनुष्य का ही नहीं हमारी संस्कृति तो प्राणी मात्र को सम्मान देती है। जिम्मेदार नागरिक की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। यह संस्कार ही हैं जो मनुष्य को जानवर से अलग करते हैं। यह बात और है कि शिक्षा को लोग अक्षर ज्ञान या डिग्री से जोड़ लेते हैं जो उचित नहीं है। शिक्षा आपमें नैतिक और मानवीय मूल्यों का विकास करती है। मानव को मानवीय मूल्य सिखाती है बाकी का दावा आधुनिक शिक्षा व्यवस्था ने भी किया जो मूल्य क्या रोजगार देने में भी विवश हो गई।
आपको यह विचार करना है कि आप किसी भी धर्म के होने से पहले भारतीय हैं और इसकी संस्कृति, सौहार्द की रक्षा करना आपका दायित्व है।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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