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मजहब बैर सिखाता है

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Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩

मुस्लिम कौम के साथ कोई कैसे रह सकता है? मुस्लिम किसी सामाजिकता का पालन तब तक करता है जब तक की वह बहुसंख्यक न हो जाये। कश्मीर में पंडितों का पलायन हो या स्कूल में आई कार्ड देखकर हिन्दू – सिख टीचर की हत्या, सभी में यही बात सामने आती है।

बंगाल और केरल पर हावी होते इस्लाम पर आंख नहीं मूंदी जा सकती है। मुसलमान को हद में रखने के लिए उन्हें अल्पसंख्यक रूप में रखना होना। अल्पसंख्यक वह तभी रह सकता है जब आप उनके जन्म दर पर रोक लगाएं। एक सामान्य मुस्लिम के औसतन पांच बच्चे होते हैं।

बंगलादेश में दुर्गा पूजा में पंडाल को नष्ट करने के साथ हिंदुओं को मारा गया, स्त्रियों का रेप किया गया। एक परिवार के पुरुष के अंगों को नोच लिया गया, वही उसकी पत्नी, बहन और मां के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया।

ऐसी ही दुर्दांत घटना का वर्णन तस्लीमा नसरीन ने अपनी पुस्तक “लज्जा” में किया है। अयोध्या में जब विवादित ढांचा गिराया गया उसकी प्रतिक्रिया के रूप में बंगलादेश में 13 साल की हिन्दू बच्ची का रेप उसी के मुहल्ले के मुस्लिमों ने किया। इन रेपिस्टों में तीन पीढ़ी के मुस्लिम शामिल थे, जब 85 वर्ष का दंगाई रेप करने लगा तो बच्ची ने कहा चच्चा आप भी, अरे आप की गोद में खेल कर बड़ी हुई हूँ।

तस्लीमा नसरीन को दंगे की हकीकत उजागर करने के आरोप में बंगलादेश छोड़ना पड़ा। वह फ्रांस, ब्रिटेन होते हुये अब निर्वासित रूप से भारत में रह रही हैं। मुस्लिम अपनी औरत का सगा नहीं है, उसे बच्चा पैदा करने की मशीन समझता है, बुर्के में कैद रखता है। वह औरत जब तक जवान है, उसकी कोख हरी भरी रखता है, उससे मानवता की आशा बेमानी है।

पाकिस्तान में कृष्ण जन्माष्टमी में मन्दिर तोड़ने का वीडियो वायरल हुआ था। अफगानिस्तान में तालिबान मन्दिर और गुरुद्वारे को मस्जिद बना दे रहे हैं। सुन्नी के लिए शिया काफिर, शिया के लिए सुन्नी और शिया व सुन्नी के लिए कूर्द काफिर। शिया, सुन्नी और कूर्द के यजीदी और अहमदिया काफिर। इन सबके के लिए हिन्दू, बौद्ध, ईसाई, पारसी आदि काफिर।

मुस्लिम आपके सामाजिक नियम को तब तक ही मानता है, जब तक वह अल्पसंख्यक है। यह अल्पसंख्यक ज्यादा दिनों तक नहीं रहता है। एक से सात, सात से उनचास। आतंकवाद का कोई धर्म नहीं है फिर भी सभी आतंकवादी मुसलमान क्यों है? मुस्लिम आतंकवाद की पहचान कर लेने पर जो कुछ मजहब के नाम का वह भी सामने आ जायेगा। सामान्य मुस्लिम डरता है, यदि वह कमियों की बात करेगा तो उसकी गर्दन जिबह कर दी जायेगी। आतंकवादी से लेकर मौलवी और आईएएस जैसा पढ़ा लिखा मुस्लिम तक यही कहता है। वह वही कर रहा है जो कुरान में लिखा है। कुरान में लिखा है कि काफिरों का कत्ल करो, जन्नत में 72 हूर पाओ। अल्लाह का काम करो, काफिर को कुरान का इल्म दो, इस रास्ते पर मारे जाते हो फिर भी तुम्हें जन्नत अता होगी, 72 हूरें मिलेगी। मुस्लिम तादाद बढ़ते ही वह शरिया की मांग करता है।

पिछले दिनों तमिलनाडु कोर्ट में एक मामला आया, एक मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र के एक मौलवी ने कहा हिन्दू की शोभायात्रा पर रोक लगे क्योंकि मेरा मजहब इसकी इजाजत नहीं देता है। उसके अजान में बेजा खलल पड़ती है। यह हालत भारत की है तब सोचिये पाकिस्तान में किस तरह से 13-14 साल की हिन्दू बच्चियों के अपहरण करके उन्हें मुस्लिम बना कर निकाह कोई मजहबी कर लेता है। अधिकार जन्म से मिलता है किंतु कर्तव्य के निर्वहन की जिम्मेदारी भी बनती है।

यदि तुम्हारा दीन असल है तो उस मजहब की रक्षा हिंसा करेगी? दहशत से इस्लाम का इल्म कम तक कराया जायेगा। जिस धर्म में जोर जबरदस्ती, धर्म परिवर्तन, हिंसा आदि है, वह धर्म नहीं हो सकता है। वह राजनीतिक विचार है। गलतियां कुरान में हैं, दोष मुल्ला मौलवी का ज्यादा नहीं है। इस्लामिक कट्टरता अन्य धर्मावलंबियों को विवश कर रही है, तुम भी विराथु बनों। हमें अमन चैन नहीं है, न ही तुम्हें लेने देंगें।

फ्रांस में कार्टून की घटना, कश्मीर का हजरतबल, मन्दिर का विवाद। अब गौर करने वाली बात है कि मुस्लिम कब हिन्दू के साथ मिल कर रहा है? यदि उसे मिलकर रहना ही आता तो भारत में हिन्दू – मुस्लिम दंगे का इतिहास नहीं रहता।

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
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