सही गलत

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Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩

समाज, लोग, जाति, विवाह-संस्कार और वैमनस्य कुछ ऐसा सब ही हम लोगों में चलता रहता है। उससे भी अधिक है रोजी-रोजगार और घर-बार।

इसी में हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई का पटाक्षेप। धर्म का अर्थ लोगों ने स्वयं की श्रेष्ठता से जोड़ लिया है क्योंकि वह उनका स्वधर्म है। धर्म गायब है अब उसका कलेवर है, जिसकी सोहबत राजनीति से है। राजनीति विश्व के अलग-अलग देशों में धर्म को अपनी तरह से चला रही है। मानवीय पीड़ा की जगह व्यक्तिगत पीड़ा तक मनुष्य सीमित हो चुका है, वह सही और गलत की जगह मूल्य और लाभ-हानि की ओर निहारता है।

कौन सा धर्म सही है, किसमे लोगों को समझने की क्षमता है – के स्थान पर विचार बना लिया गया है कि मेरा वाला ही श्रेष्ठ है। इसलिए मेरा वाला ही अन्य को भी स्वीकार होना चाहिए।

विश्वभर में राजनीति के लिए धर्म का आश्रय लिया जा रहा है। लेकिन नास्तिक राजनीति को देखने पर पता चलता है इसका उद्देश्य अपने नेता को ही ईश्वर बनाना है। यह नास्तिकता का दिखावा इसलिए है कि पूरे बने सिस्टम को खत्म कर एक नई व्यवस्था बना कर स्वयं को स्वयंभू बना लेना है। इसके उदाहरण आपको स्टॅलिन, माओ और प्रत्यक्ष जिनपिंग में देखें जा सकते हैं।

वेश्यावृत्ति, शराब और मांसाहार सदा से बुराई रही है, जिसे आज भी बुराई ही माना जाता है। तरह-तरह के सम्मेलन विश्वभर में होते हैं, परंतु वेश्यावृत्ति को रोकने, शराब को रोकने अथवा मांसाहार को रोकने के लिए विश्व में कोई सम्मेलन नहीं होता है। न ही इसके विरोध में कहीं कोई आयोजन ही होता है।

सही और गलत का पैमाना, मेरे और तेरे लाभ-हानि पर निर्भर करता है। विश्व में आतंकवाद को लेकर खूब चर्चा होती है लेकिन जो चीज सबसे अधिक महत्वपूर्ण है, उस पर सब चुप रहते हैं। आखिर इन आतंकवादियों को हथियार और धन कौन देता है?

विश्वभर में फैला आतंकवाद पूर्णतया राजनीति प्रेरित अथवा हिंसात्मक राजनीति ही है, बस इसके मुख्य खिलाड़ी पर्दे के पीछे रहते हैं और सिर्फ प्यादे घटना को अंजाम देते हैं।

सनातन धर्म विश्व के अन्य धर्मों से इसलिए भी भिन्न है क्योंकि को वह अन्य प्राणियों को बराबरी का स्थान देता है। मनुष्य के लिए ८४ लाख योनियों की बात करता है। इन ८४ लाख योनियों में कुत्ता-बिल्ली आदि स्थावर-जंगम सभी प्राणी समाहित हैं। उसका मानना है ‘जीयो और जीने दो’। अन्य जीवों को भी पूरा अधिकार है कि वह स्वयं को विकसित कर सकें।

दूसरी ओर धर्म के रूप में वे मजहब या रिलीजन हैं जो मात्र स्वयं के विकास को प्रेरित करते हैं। वे अन्य जीवों को भोजन समझते हैं, वे आत्मिक और आध्यात्मिक सुख रात में मुर्गा, बकरी आदि खाने के बाद सुबह शांति, इबादत और ईश्वर की बात करने में समझते हैं।

हम यह नहीं कहते हैं कि आप सनातन धर्म को ही माने, बल्कि हम तो यह कहते हैं कि धरती के प्राचीनतम धर्म के विषय मे अवश्य जानें। हमारे शास्त्र आपको पल्लवित और पुष्पित करने के लिए कहते हैं, वह स्वयं को जानने योग्य कहते हैं जिनमें हमारे ऋषि मुनियों ने विज्ञान, चिकित्सा, ज्योतिष, ज्यामिति, रेखागणित, बीजगणित, रसायन शास्त्र आदि को समझ के साथ रुचिकर ढंग से प्रस्तुत किया है।

यह ऋषि अगस्त्य, भारद्वाज, कणाद, बौधायन, नागार्जुन, चरक, सुश्रुत, आर्यभट्ट, वराहमिहिर, भास्कराचार्य आदि की एक परंपरा रही है। देखिए क्या किसी मौलवी पादरी में ऐसी कोई परम्परा रही है?

विश्व आज जिस विकास का शोर कर रहा है, वह विनाश की ओर करताल ज्यादा है। अतिवृष्टि, अनावृष्टि, भूकम्प, पहाड़ो का धसना, नदियों का विलुप्त होना, तरह-तरह की बीमारियों का पैदा होना – यह सब इसी विकास का फल है।

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
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