एक देश अपने समाज से निर्मित होता है। वह समाज कुटुम्ब अर्थात परिवार आधारित होता है। भारत में एक समय संयुक्त परिवार की परिपाटी थी किंतु आज न्यूक्लियर फेमिली (एकल परिवार) का युग है।
संयुक्त परिवार का सकारात्मक पक्ष यह है कि कमाने वाले एक-दो हो सकते हैं परंतु भोजन, कपड़ा और जरूरत की चीजें सभी को मिलती हैं। एक मामले में परिवार की भूमिका बहुत अहम रही है – किसी एक सदस्य की बीमारी या संकट आने पर पूरा परिवार एक हो जाता है। पारिवारिक उत्सव होने पर पूरा परिवार आनंदमय रहता है। यह भी सच है कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। कृषि में जब तक तकनीक का समावेश नहीं हुआ था, उस समय तक मैन-पॉवर की जरूरत पड़ती थी, तब तक संयुक्त परिवार आर्थिक भूमिका के आधार थे।
आज के समय में परिवार की आर्थिक भूमिका गौण होने से, परिवार पर विदेशी संस्कृति का प्रभाव पड़ा, यही वह यम दृष्टि थी जिसने स्वयं का भौतिक सुख दिखा कर परिवार पर मानसिक आघात किया, जिसे परिवार नामक संस्था कम से कम उत्तर भारत में बर्दाश्त नहीं कर पाई और विखंडित हो गई। परिवार की भूमिका दक्षिण भारत में अब भी बनी हुई है।
संयुक्त परिवार संस्कृति के वाहक रहे हैं। परिवार के सदस्यों को उच्छृंखलित नहीं होने देते हैं। यही कारण था जो पाश्चात्य संस्कृति ने परिवार को निशाना बनाया। परिवार टूट गये, संस्कृति दूषित हुई और अब भारतीय बच्चों के काले अंग्रेज बनने पर उनके माता-पिता ही ताली पीट रहे हैं।
रिश्ते नित कमजोर हो रहे हैं। पत्नी और पति एक दूसरे पर लांछन लगा कर अलग होने के बहाने खोज रहे हैं। ऐसे में बड़ी समस्या बच्चों और वृद्धों के लिए है। उत्तर भारत का परिवार भाई-भाई और पति-पत्नी के संघर्ष में अपनी ऊर्जा जाया कर रहा है।
परिवार, समाज फिर धर्म :
धर्म भारत में सदा से वैयक्तिक विषय रहा है फिर भी धार्मिक उत्सवों का प्रकटीकरण सार्वजनिक रहा है। यथा रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी, शिवरात्रि, नवरात्रि, गणेश उत्सव, हनुमान-जयंती आदि।
परिवार के टूटने से धार्मिक मान्यताओं में कमी आयी है, लोग सोचते हैं कि केवल मेरे न मानने से उत्सव में कमी न आ जायेगी। समाज पर नास्तिकता का प्रभाव बहुत प्रभावशाली ढंग से पड़ा है। बात-बात पूछ रहे हैं भगवान है तो फला समस्या क्यों है?
नवीन अम्बेडकरवादी वर्ग जो भीमराव को नया भगवान सिद्ध करने के लिए लड़ने को तैयार हैं। इन्हें संविधान सभा और उसके अध्यक्ष राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद के बारे में भी नहीं पता है। यदि एक झूठ को एक लाख बार बोला जाये, तो वह सत्य को भी विस्थापित कर देगा। मन का देवा-सुर संग्राम और वाह्य देवा-सुर संग्राम नित्य चलता रहता है। जो जिस मान्यता को मानता है, वह सिर्फ उसे ही सही कहता है।
एक और बड़ा परिवर्तन है, अच्छी-खासी तादाद यीशु को पूजने लगी है। अपने घर से भूत भागने के लिए, पेट का उपचार करने के लिए, रुपये की व्यवस्था करने के लिए। पूछने पर कहते हैं – ‘यीशु से बहुत लाभ है’। धर्मांतरण के पीछे राजनीतिक कारण अधिक हैं।
सनातन धर्म में नैतिकता और चरित्र धर्म के साथ रहे हैं। नैतिकता और चरित्र से हीन व्यक्ति समाज के लिए हानिकारक है। वह तरह-तरह की बातें फैलाकर अपना एक वर्ग बना लेता है। अब उस व्यक्ति का यदि आप थोड़ा भी विरोध करते हैं तो उसके जाति वाले आप पर हमला करने को आतुर हो जाते हैं।