स्वतंत्रता का मतलब लोगों ने स्वछंदता से लगा लिया। आज बच्चे चलना सीखने से पहले GF/BF और ब्रेकअप सीख जा रहे हैं। लोग नंगे-पुंगे कपड़े पहनने को आजादी कहते हैं। प्रेम से पहले शरीर का मिलन आवश्यक हो गया है।
इंटरमीडियट में पढ़ने वाला बच्चा डिप्रेशन में है क्योंकि उसके अभी तक के पार्टनर ने दूसरा साथी ढूढ़ लिया है। सोशल मीडिया का प्रयोग है, उल्टे – पुल्टे चीजें डालकर चेक करना कि कितने लाइक और कमेंट हो गये।
Tik Tok विडियो हो या viva विडियो हर ओर अश्लीलता की नुमाइश क्रिएटिविटी का नाम हासिल कर ले रही है।
अरे! वो माता पिता कहाँ बुरे थे जो जल्दी शादी करवा देते थे? कम से कम आज वाले लव में पड़ के जीवन तो नष्ट नहीं होता, बच्चा कुछ तो करता ही।
पढ़ाई सतही हो चुकी है, लोग एक दूसरे को नंगा देखने में मजा लेना चाहते हैं। पश्चिमी जगत से सिर्फ फैशन ही क्यों सीखते है? विज्ञान और टेक्नोलॉजी भी सीख सकते हैं, ईमादारी से अपने काम को अंजाम देना भी तो सीख सकते हैं।
सांस्कृतिक मूल्यों के क्षरण से सामाजिक और राजनीतिक मूल्य भी धराशायी हो जायेगा। गड्ड-मड्ड का समाज ज्यादा दिन तक नहीं चलता है, न ही नकल ज्यादा दिन टिकती है।
रिश्तों में ‘प्रेम’ का स्थान आज ‘जरूरत’ ने ले लिया यदि जरूरत है तो ठीक नहीं तो आप अपने रास्ते मैं अपने रास्ते। सब कुछ स्वार्थपरकता के अनुरूप हो जाएगा तब वास्तविक आनंद का पता कैसे चलेगा?
आज बहुत लोग ऐसे भी हैं जिनका मानना है कि उनके माता – पिता ने उन्हें अपने सुख में जन्म दिया है इसलिए जिम्मेदारी उठाएं, हाँ एक चीज और कि मेरी लाइफ में इंटरफेयर न करें।
विचारों का अभाव, विवाद जोरदार, स्वार्थ और एक अंधी दौड़ किन्तु जाना कहा है? न मंजिल है न रास्तों का पता है बस लाइफ में ट्विस्ट चाहिए और मजे भी, लोग वाहवाही करें बस इतनी सी चाहत का झोला लिए भटक रहे हैं।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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