यह बिगबॉस में क्या चल रहा है?
और पिछले दो – तीन सालों से नेटफ्लिक्स सीरीज में सेक्रेड गेम्स, मिर्जापुर, अपहरण, कालेज रोमांस, सेक्स चैट में जो दिखाया जा रहा है, हिंसा, सेक्स और नशा उसका आज के टीनएजर पर कैसा बुरा प्रभाव हो रहा है।
गर्लफेंड, ब्वॉयफ्रेंड, ब्रेकअप बहुत आसान हो गया। विकास का एक पैमाना है रिश्तों में सेक्स की स्वतंत्रता, दो नये लोग मिले तो सोचें करना कैसे है। प्रेम के धरातल से ज्यादा जरूरत को बढ़ावा दिया जा रहा है। बढ़ते यौन अपराध, उमंगों को आग देते चलचित्र से समाज को कैसे बचाएंगे।
इन सीरियल का मतलब किसी प्रकार का सामाजिक मैसेज न होकर सिर्फ बाजारवाद को बढ़ावा देना है। मूल्यरहित सम्बन्ध, कुंठा, मानसिक अवसाद को जन्म दे रही है। साइकियाट्रिस्ट की जरूरत उदारीकरण के पूर्व नहीं थी लेकिन अब तो बहुत हो चुकी है। भारतीय, पश्चिम की नकल में अंधा हो गया।
गूगल के दौर में शिक्षा बहुत सतही हो चुकी है। कई बच्चें तो बाप का नाम पूछने पर एक बार जरूर सर्च करते है ‘what is your Father name’. ज्ञातव्य है कि शिक्षा मनुष्य को जानवर से अलग करती है लेकिन आज की उपयोगितावादी आत्मकेंद्रित शिक्षा व्यक्ति को फिर से जानवर बनने के लिए धकेल रही है।
पहले व्यक्ति की जरूरतों के अनुसार बाजार होते थे, आज बाजार की जरूरतों के अनुसार व्यक्ति बनाया जा रहा है। फ़िल्म में बस यह ध्यान देना है कि शराब का सीन कितनी देर बाद पुनः दिखाया जाना है। बाजार की पूर्ति के लिए व्यक्ति को एक ईकाई बना दिया गया है जहाँ संवेदनाएं सोशल मीडिया पर चली गयी है। यह अमानवीयकरण है जो व्यक्ति को वस्तु बनने की ओर ले जा रहा है उसकी तुलना मशीन से हो रही है वह मशीनीकृत मानव बनने के लिए रोज सोच रहा है।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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boht acah likhte hai AP dhananjay ji
acah likhte hai app