नारी का शास्त्र

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Dhananjay Gangey
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धर्म के नाम पर विश्व मे बहुत खून बहे। स्त्री के लिए अलग कानून बनाया गया। उन पर चुड़ैल का आरोप लगा फाँसी पर टांग दिया गया या जला दिया गया।

भारतीय संस्कृति इनसे भिन्न है गो, ब्राह्मण, और कन्या को भोजन करा के उसे नारायण तक पहुँचा दिया जाता है। कन्या के पैर धोये और छुये जाते है। पिता जिसे जन्म दिया उससे आशीर्वाद लेता है बड़ा भाई छोटी बहन के पैर छूता।
धर्म के लिये विश्वभर में कत्लेआम हुआ। जिस चीज को लेकर नारियां आलोचना करती है वही नारी के सम्मान के लिए रामायण और महाभारत कर दी। वही जिन्हें हम राम और कृष्ण के रूप में पूजते है।

यदि आप हिन्दू धर्म मानते है तो हिन्दू विधियों का पालन करना होगा। स्वैच्छाचारिता नहीं चलेगी।
कभी कभी स्त्री के सती होने का साक्ष्य मिलता है पहला महाभारत में पांडु की पत्नी माद्री का दूसरा गुप्त वंश के ऐरण अभिलेख से भी सती का साक्ष्य मिलता है बाद में कुछ छुटपुट घटनाएं देखने को भी मिलती है।

सती जिसे प्रथा का नाम दिया गया जिसके लिए राजा राममोहन राय को अंग्रेजो ने मोहरा बना कर भारतीय संस्कृति पर हमला किया। संस्कृति पर प्रहार इस लिए किया जाता है जिससे आपकी प्रेरणा को तोड़ कर दिग्भ्रमित कर अपने को श्रेष्ठ सिद्ध किया जा सके।

सती होने स्त्री की स्वेच्छा थी जोर जबरदस्ती नहीं। सुलोचना के सती होने का साक्ष्य मिलता है तो कौशल्या, कैकेई, सुमित्रा और मंदोदरी के जीवित रहने का साक्ष्य है। जो यह समझती है कि ये जो मेरे पति मृत्युशैय्या पर पड़े है इनके वैगेर तो मेरा जीवन ही नहीं। क्योंकि जीवन और मृत्यु दोनों में हम अभिन्न है। वही सती होती थी।

नारी सम्मान और प्रेम की गाथा भारतीय संस्कृति है जिसे हम भूल गये है अपनी संस्कृति का ज्ञान नहीं है। हम पश्चिमी सभ्यता के बहकावे में आ जाते है।

पर्दा प्रथा को ले यह भारतीय संस्कृति की देन नहीं बल्कि इस्लामिक कल्चर है भारत में स्त्री पुरुष बराबर ही नहीं बल्कि पूरक है वह कौन सा घर नहीं है जहाँ मां का अनुशासन नहीं चलता है। यह अलग बात है की शुरू की स्त्रियों की जगह आयुवृद्धि की सुनवाई ज्यादा होती है। क्योंकि उसके व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं होते है।

“एको ही नारी सुंदरी या दरीवा” अर्थात नारी एक हो वह चाहे सुंदर हो या कुरूप। भारतीय संस्कृति विदुषी नारी से भरे पड़े है वह वेद की ऋचाएं रचती थी। वह शास्त्रार्थ (वाद विवाद) में भाग लेती थी।

कैकेयी और द्रौपदी तो राजसलाहकार भी थी। समस्या वहां है जब हम अपने को जानते नहीं। वेद, उपनिषद और रामायण की आलोचना वह करता है जिसने कभी पढ़ा ही नहीं। सती के अपमान पर संकर से अपने श्वसुर प्रजापति दक्ष का सिर काट दिया था। हम व्यक्तिगत हित को सर्वहित से ऊपर रख रहे है जिससे जकड़न महसूस हो रही है।

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
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